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Q. ISRO ने किस ग्रह के लिए बैक्टीरिया, ग्वार फली से अंतरिक्ष-ईंट बनाने की तकनीक विकसित की?
a. बुध (Mercury)
b. शुक्र (Venus)
c. मंगल (Mars)
d. शनि (Saturn)
Answer: c. मंगल (Mars)
– इसरो और IISc ने ऐसी ब्रिक्स बनाई है, जो मार्स के स्वॉयल (मिट्टी) के ऊपर कंस्ट्रक्शन में मदद करेगी।
– इसे बैक्टीरिया, ग्वार फली और यूरिया और कुछ चीजों से बनाया गया है।
क्यों बनाई गई खास ईंट
– भविष्य में मंगल ग्रह पर रिसर्च स्टेशन बनाए जाने की योजना दुनियाभर की स्पेस एजेंसी बना रही है।
– इसके लिए वहां ऐसे स्ट्रक्चर बनाने होंगे, जो मंगल के वातावरण के खतरे से हमें प्रोटेक्ट कर सके।
– मंगल पर हवा का घनत्व बेहद कम है।
– मिट्टी में मिनिरल्स ज्यादा होने से यह मनुष्यों के लिए जहरीली है।
– इसलिए खास तरह की ईंट का निर्माण किया गया है।
– इसके निर्माण के लिए मंगल की मिट्टी, बैक्टीरिया और केमिल का इस्तेमाल किया गया है।
– सवाल है कि मंगल से अभी तक कोई भी उपकरण लौटकर नहीं आया, तो यह मिट्टी आई कहां से।
– इसके बारे में आगे बताते हैं –
पृथ्वी और मंगल के कुछ तथ्य
– सूर्य से पृथ्वी की दूरी : 93 मिलियन माइल्स (लगभग 15 करोड़ किलोमीटर)
– सूर्य से मंगल की दूरी : 142 मिलियन माइल्स (लगभग 23 करोड़ किलोमीटर)
– दिन-रात की अवधि (पृथ्वी) : 23 घंटे 56 मिनट
– दिन-रात की अवधि (मंगल) : 24 घंटे 37 मिनट
मंगल का वातावरण
– मंगल ग्रह पर करोड़ों साल पहले पानी हुआ करता था, पृथ्वी की तरह। लेकिन किसी परिस्थिति की वजह से पानी गायब हो गया या कहें तो अंतरिक्ष में बिखर गया।
– वहां अभी भी जमीन के नीचे और ध्रुवों पर पानी मौजूद है।
– मंगल ग्रह पर ऑक्सीजन भी मौजूद थी, लेकिन यह एटमॉस्फेरिक चेंज की वजह से अंतरिक्ष में चला गया। अभी बेहद सूक्ष्म मात्रा में ऑक्सीजन है।
– ऐसे में मानव बस्तियां बसाना आसान नहीं है। इस मुश्किल का हल निकालने के लिए वैज्ञानिक काम कर रहे हैं।
– इसी के तहत इसरो ने खास तरह की स्पेस ब्रिक्स बनाई हैं।
पृथ्वी और मंगल की मिट्टी में अंतर
– पृथ्वी : 50% एयर और वाटर, 5% ऑर्गेनिक मैटर, 45% मिनरल मैटर
– मंगल : 98% मिनरल मैटर और 2% वाटर है।
– मंगल की मिट्टी में ऐसे मिनरल हैं, जो मनुष्यों के लिए जहरीली हो सकती है।
मंगल की मिट्टी, बैटीरिया और केमिकल से बनी ईंट
– सवाल है कि मंगल से अभी तक कोई भी उपकरण लौटकर नहीं आया, तो यह मिट्टी आई कहां से।
– अमेरिका के हवाई इलाके में मंगल पर मौजूद मिट्टी की तरह की मिट्टी पाई गई है।
– इसके अलावा वैज्ञानिकों ने मंगल की तरह की मिट्टी लैब में तेयार की है। जैसे कि चांद की मिट्टी इसरो के वैज्ञानिकों ने कुछ साल पहले तैयार की थी।
नासा भी बना चुका है मंगल के लिए ईंट
– करीब 20 साल पहले अमरिकी स्पेस एजेंसी नासा ईंट बना चुका है।
– इसका नाम JSC MARS-1 रखा गया था।
– लेकिन यह इतना ज्यादा सक्सेसफुल नहीं हो पाया कि मार्स के क्लाइमेट पर काम कर सके।
इसरो की स्पेस ब्रिक्स
– इसरो ने जो स्पेस ब्रिक्स बनाई है, वह स्टील से भी ज्यादा हार्ड है।
– रिसर्चर्स ने इसमें ग्वार फली, बैक्टीरिया स्पैरासार्सिना (Sporosarcina), यूरिया और निकेल कार्बोनेट का यूज किया है।
– जब सारी चीजों को शेप बनाया तो कुछ दिन बाद देखा गया कि बैक्टीरिया ने यूरिया को खास तरह के कैल्शियम कार्बोनेट के छोटे-छोटे क्रिस्टल में कन्वर्ट कर दिया।
– जब हम इस कैल्शियम कार्बोनेट को काम पर लेंगे, तो बहुत स्ट्रॉंग सीमेंट के टाइप का कांक्रीट स्ट्रक्चर बन जाएगा।
– यहां समस्या थी कि स्वायल टॉक्सिक है, इसलिए बैक्टीरिया ग्रो नहीं कर रहा था। लेकिन जब इसमें निकेल क्लोराइड को शामिल किया तो बैक्टीरिया द्वारा स्रावित बायोपॉलिमर ने इसकी जगह ले ली।
– कोशिश की गई कि ब्रिक्स पोरस (महीन छिद्र) न हो।
– क्योंकि ज्यादातर दिक्कत यही हुई कि ईंट में पोरस (महीन छिद्र) होती है।
– इस समस्या का समाधान बैक्ट्रीरिया ने किया। वह ईंट के बहुत ही डीप कोर स्पेस में जाकर वहां स्पेस ऑक्यूपाई की, ताकि यह पोरस को खत्म कर सके।
– अब वैज्ञानिक यह देखेंगे कि मंगल के एटमॉस्फेयर को यह ईंट बर्दाश्त कर पाता है।
– कुछ डिवाइस भी बनाई जा सके कि बैक्टीरिया को डेवलप किया जा सके।
– टीम अब इस बात की जांच करने के लिए कमर कस रही है कि मंगल ग्रह का वातावरण कम गुरुत्वाकर्षण के साथ ‘अंतरिक्ष ईंटों’ को कैसे प्रभावित करता है।
– क्योंकि मंगल ग्रह का वातावरण पृथ्वी की तुलना में सौ गुना पतला है, और इसमें 95% से अधिक कार्बन डाइऑक्साइड है, जो बैक्टीरिया के विकास को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकता है।
लैब में मंगल की तरह का वातावरण
– लाल ग्रह पर स्थितियों को फिर से बनाने के लिए, शोधकर्ताओं ने एक उपकरण-MARS (मार्टियन एटमॉस्फियर सिम्युलेटर) का निर्माण किया है।
मंगल पर अब तक क्या हुआ है?
– भारत ऐसा पहला देश है, जिसने पहली बार में मंगल के ऑर्बिट तक मिशन पहुंचाया।
– मंगलयान मिशन 5 नवंबर 2013 को लांच हुआ था और 24 सितंबर 2014 को मंगल के ऑर्बिट में प्रवेश किया।
मिट्टी लाने को नासा का 9 बिलियन डॉलर मिशन
– नासा अपने कई मिशन को मंगल पर उतार चुका है।
– नासा का पर्सविरंस रोवर सितंबर 2021 में मंगल के जेजेरो क्रेटर पर उतरा।
– यह रोवर मंगल ग्रह पर एंसिएंट लाइफ (प्राचीनकाल के जीवन) के सबूत खोजने के लिए भेजा गया है।
– नासा के इस मिशन में भारतीय मूल की स्वाती मोहन (नेविगेशन एंड कंट्रोल ऑपरेशंस लीड) भी काम कर रही हैं।
– इसमें एन्जेन्यूटी नामक एक हेलिकॉप्टर भी था, जिसने वहां उड़ान भी भरी।
– पर्सविरंस रोवर ने मंगल की मिट्टी के सैंपल लिए हैं, उसे पृथ्वी पर लाने की योजना है।
– वहां की मिट्टी पृथ्वी पर लाने के लिए नासा 9 बिलियन डॉलर (68 हजार करोड़ रुपए) खर्च कर रहा है।
– नासा ने मॉक्सी (MOXIE) नामक उपकरण भी पर्सविरंस रोवर के साथ भेजा है, जो वहां के वायुमंडल में मौजूद कार्बनडाई ऑक्साइड से ऑक्सीजन बनाता है।
इसरो चेयरमैन – एस सोमनाथ
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